शब्द के मायने और उसके गुण-दोष परिस्थित और काल के अनुसार बदलते रहते है अब सोचना आप को है कि इस शब्द का इस्तेमाल कैसे और कहां करना है ?
उपमहाद्वीप,. हिन्दुस्तान,……… भारत, राष्ट्र,. गणराज्य, देश
देशद्रोहियों की सजाये सुनिश्चित की जाय
इस जमीन के टुकड़ों को सियासिती तौर पर अग्रेज हुक्मरानों ने एक कर इण्डिया बना या ! और बापू ने इस मुल्क को भावनात्यामक तौर से जोड़कर भारत बनाया । सियासत ने हमें भौगोलिक सीमाओं के भीतर समेट कर एक कर दिया किन्तु क्या हम “अनेकता में एकता” वाले सूत्र में गुथ पाये ?
महाराष्ट्र में जो हुआ, भाषा के नाम पर, वह क्या बेहूदा संदेश देना चाह्ता है, दुनिया को । या दक्षिणपंथी, वामपंथी या फ़िर नक्सलवादी किस बात की लड़ाई लड़ रहे है इस राष्ट्र से, कभी मन्दिर के नाम तो कभी संस्कृति के नाम, सर्वहारा के नाम पर, जायज मुद्दों पर सरकार से लड़ाई तो समझ आती है पर राष्ट्र से लड़ाई लड़ना ,,,,,,,,,,,,,देश की अखण्डता, गौरव, सुरक्षा और संस्कृति को क्षति पहुचाना किस तरह की क्रान्ति का परिचायक है!
हमारे मुल्क तमाम सिरफ़िरे लोग आयातित विचारधारा का चोला पहने घूम रहे है जो गरीबी, भुखमरी, और समानता की सवेंदनशील बाते करते है मशाले लेकर क्रान्ति की बात करते है पर क्या उन्होने अपने दामन को कायदे से निहारा है कि इन तमाम वर्षों में उनकी क्या उपलब्धता रही सिवाय इसके “कि भारत के खुशग़वार मौसम में भी छाता लगा लेने के यदि बीजिंग या मास्को में पानी बरस रहा हो तो ।”
और कुछ ऐसा ही है उन कथित राष्ट्रभक्तो के लिये जो दम भरते है विशुद्ध भारतीयता और इसके दर्शन का कभी-कभी तो वही अपने आप को भारतीय मानते है और सब कूड़ा-करकट, झाड़ू लगाने की बेहूदी बात भी कर देते है सियासी मैदानों में! अब इनकी भी देशभक्ति सुन लीजिये, जब आजादी की लड़ाई में भारत हर खास ओ आम आदमी उस नेक-माहौल में अपना – अपना योगदान दे रहा था तब ये सब अग्रेजों की मुखबरी और बापू की हत्या करने के प्रयास में तल्लीन थे ! मुल्क आज़ाद हुआ तो ये सब जमीदारों-राजाओं के एजेन्ट बन कर उनकी रियासतॊं को बचाने में लग गये, उसमे विफ़ल हुए तो जनता पर क्रूरता और जोर-जबरदस्ती से शाशन करने वाले इन अग्रेजी एजेन्टों का पेन्शन-भत्ता ही बच जाय इसकी पुरजोर कोशिश ………….किन्तु विफ़लता ही लगी इन कथित ……………….को………....
विचारधारा को हथकण्डा बनाकर राजनीति करने वालों ने तो इस देश की जमीन पर अपने-अपने टुकड़ों का नक्शा भी ख़ीच लिया और सशस्त्र लड़ाईयां भी जारी है। पर सियासत दा जो सरकार में है वो भी किसी तरह पांच साल गुजारना चाहते है बिना किसी विवाद के और इस ख्वाइस के साथ कि आने वाले पांच साल भी हमारे हो जाय ।
इस मुल्क में तो राष्ट्रभक्तों पर गीत लिखने वाले व्यक्ति भी सुरक्षित नही रहे एक पूर्व राजा ने जिसकी पीढ़ियां सियासत में आज भी राजा का दर्जा हासिल किये है, ने कविता की उन लाइन्स को खारिज़ करने की बात कही जिनमे उनके पुरखो के देशद्रोही होने का जिक्र था कवियत्री नही मानी तो उनका रोड-एक्सिडेन्ट करा दिया जाता है??????
तमाम सियासत दां के सफ़ेद चेहरों के पीछे छिपी है काली रात की भयानक करतूते किन्तु वों धरती के देवता का ओहदा प्राप्त किये लाल-बत्तियों वाले रथों में विराजमान होकर देश की छाती पर मूंग दल रहे है बिना किसी डर या शर्म के ।
भारत सरकार को ऐसे “anarchists” ????????को राज्य-सत्ता की अस्मिता पर हमला बोलने के जुर्म में सजा-ए-मौत देना सुनिश्चित करे ———–इससे कम बिल्कुल नही ! यह राज्य का अधिकार भी है और दायित्व भी !
यदि सरकार अपने दायित्वों का निर्वहन सही ढ़ग से नही करती तो उसके खिलाफ़ आवाज उठाना यकीनन उचित है इसे आप “Anarchist Revolt” नाम दे सकते है महात्मा गांधी को भी ब्रिटिश सरकार कभी-कभी इसी शब्द से नवाजती थी ।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारतवर्ष
सही कहा आपने
वो लिंगदोह का कथन तो
याद होगा न ! —-
''नेता देश के कैंसर हैं |''
अफ़सोस यही है …
आभार … …
शब्दो के इस्त्माल के बारे मे सही कहा आपने . ईसे हमेशा याद रखना
शब्दो के इस्त्माल के बारे मे सही कहा आपने . ईसे हमेशा याद रखना
good article boss…i appreciate it…